शनिवार, 27 जून 2020

ज्योतिष जगत में ऐतिहासिक कदम -"लग्नोदयरहस्य विशेषांक का प्रकाशन " "संवत्-२०७८"

श्रीताराप्रसाद दिव्य पंचांग द्वारा विगत ६ वर्षों में अनेक अश्रुत एवं अलोकित विषयों को प्रस्तुत करके ज्योतिष जगत की जो सेवा की है उससे आप परिचित ही हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य है- तिथि पर्वों की एकरूपता, सूक्ष्म गणित की प्रस्तुति, ज्योतिष की आवश्यक विषय वस्तु को एक पटल पर उपलब्ध कराना तथा शुद्ध जन्म पत्रिकाओं का निर्माण ।
          कुर्मांचल में बन रही अशुद्ध जन्म पत्रिकायें ज्योतिष जगत के लिए विशेष चिन्ता का कारण रही हैं । इस पर विशेष मन्थन करने के बाद हमने यहाँ के विभिन्न जनपदों के २००० जन्म पत्रिकाओं पर अनुसंधान किया जिसमें १६०० जन्म पत्रिकायें अशुद्ध पायी गई जिसका मुख्य कारण अशुद्ध इष्ट काल एवं अशुद्ध लग्न मान से लग्न साधन था इसका एक कारण यहाँ के परम्परागत पंचागकारों का संकुचित ज्ञान भी था।
         यद्यपि यहाँ के सूर्योदय- सूर्यास्त आदि को हमने अपने पंचांग के माध्यम से शुद्ध कर दिया है, लेकिन यहाँ के अधिकांश ज्योतिर्विद व पुरोहित जन आज भी २० अयनांशीय सायन लग्न मानों का प्रयोग कर रहे हैं जिससे कुण्डली में लग्न त्रुटि पूर्ण होने से जो जातक मंगली नहीं हैं वे मंगली दर्शित किये जा रहे हैं जो मंगली हैं उन्हें मंगली नहीं दिखाया जा रहा है यह स्थिति ज्योतिष जगत के लिए चिन्तनीय है।
     गिरिजा माता की अहैतुकी अनुकम्पा से ३०० वर्षों के बाद हमने प्रचलित लग्नमानों को संशोधित कर शुद्ध लग्नमान प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हम प्रतिज्ञा पूर्वक ज्योतिष जगत को विश्वास दिलाते हैं कि किसी पंचांगकार द्वारा यह अपूर्व प्रस्तुति है।
    इसमें उत्तराखंड के समस्त जनपदों के अलावा दिल्ली, मुम्बई, लखनऊ, चण्डीगढ के भौगोलिक अक्षांश, भूकैन्द्रिक अक्षांश, त्रिकोणमिति से परिगणित पलभा दशमलव में, पलभा अंगुलादि, चरखण्ड पल-विपल। 
         उक्त सभी स्थानों के चरखण्ड, लग्नमान (स्वोदय पल) पृथक-पृथक।
        सायन संस्कृत लग्न मानों से  भुक्त-भोग्य विधि से लग्न साधन के अभ्यस्त ज्योतिषियों की सुविधा के दृष्टिगत सम्पूर्ण कुर्मांचल के लिए २४ अयनांशीय सायन संस्कृत लग्न सारणी सम्पूर्ण गणित सहित प्रस्तुत की जा रही है। 
             इसके बाद लग्न साधन की प्राचीन एवं शास्त्रीय विधि सरल उदाहरण सहित विस्तार से  दी गई है। 
             तत्पश्चात सायन संस्कृत लग्न मानों से सूर्य के भुक्त-भोग्यांश से लग्न साधन की विधि एवं उसमें भी अयनांश संस्कार कैसे किया जाता है यह बताया गया है।
            पुनः सारणी द्वारा लग्न साधन की विधि उदाहरण सहित विस्तार से दी गई है तथा सारणी द्वारा साधित लग्न में  कैसे अयनांश संस्कार किया जाता है यह सरल भाषा में  समझाया गया है।
     इसके बाद साम्पातिक काल द्वारा लग्न साधन की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
        इस प्रकार  श्रीताराप्रसाददिव्य पंचांग का आगामी संवत् २०७८ शाके १९४३ का "लग्नोदय रहस्य विशेषांक" प्रत्येक ज्योतिष प्रेमियों  के लिए एक ग्रन्थ के रूप में  दीर्घ काल के लिए संग्रहणीय है।
         आपसे विशेष निवेदन है कि आप इस ज्योतिष ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पंचांग के आगामी संस्करण की न्यूनतम १०(दस) प्रतियाँ अपने क्षेत्र में वितरित करने का संकल्प ले आपको पंचांग अत्यंत ही न्यूनतम लागत मूल्य पर दिया जायेगा इस सम्बन्ध में अपनी स्वीकृति से हमें निम्न नम्बर पर सम्पर्क करें।
              कुछ सुदूर क्षेत्रों तक पंचांग बहुत ही बिलम्ब से पहुँचता है इस समस्या के निदान हेतु आप अपने क्षेत्र में न्यूनतम १०(दस) जनों का समूह बना कर हमें  सूचित करें आपको भी पंचांग लागत मूल्य पर  डाक से भेजा जायेगा।
         इस विशेषांक के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य है कि सभी जातकों की जन्मपत्रिकायें सही व शुद्ध  बनें । हम अपने उद्देश्य में सफल तभी होंगे जब आप हमें सहयोग करेंगे।
         पंचांग सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है इसलिए इसे जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से अपने स्तर से अधिक से अधिक प्रतियाँ वितरित करने के लिए हमसे सम्पर्क करने की कृपा कीजिएगा । विशेष भगवत्कृपा। श्रीगिरिजा माता की जय। श्रीकृष्ण स्मृतिः। 
निवेदक- आचार्य (डॉ)रमेश चन्द्र जोशी प्रधान सम्पादक श्रीताराप्रसाददिव्य पंचांग, ज्योतिष भवन, चित्रकूट, रामनगर, नैनीताल (उत्तराखंड) 
सम्पर्क- 9410167777
Email-tarajyotish@rediffmail.com

सोमवार, 15 जून 2020

Solar Eclipse|| सूर्य ग्रहण|| June 2020

सूर्य ग्रहण पर विशेष:-
श्रीतारा प्रसाद दिव्य पंचांग के माध्यम से हमनें सूर्य ग्रहण दिनांक  21 जून 2020 के सम्बन्ध में  जानकारी सितम्बर 2019 में  ही दे दी थी पुनः इस सम्बन्ध में कुछ  विशेष तथ्य निम्न प्रकार हैं:-
समय:-हमारे पंचांग केन्द्र श्रीगिरिजा माता मन्दिर रामनगर( नैनीताल ) में  यह ग्रहण प्रातः 10:25 बजे प्रारम्भ होगा तथा मोक्ष अपराह्न 1:53(13:53) बजे होगा सम्पूर्ण उत्तराखंड में  इसका समय 2 -3 मिनटों के अन्तराल से लगभग यही रहेगा ।
ग्रहण का सूतक :-ग्रहण का सूतक ग्रहण प्रारम्भ होने से 12 घण्टे पूर्व से प्रारम्भ होकर ग्रहण समाप्ति तक रहेगा । उत्तराखंड में यह पूर्व दिन रात्रि 10:25(22:25) बजे से प्रारम्भ हो जायेगा।
कुछ विशेष योग:- रविवार के दिन पड़ने से चूड़ामणि ग्रहण कहा जाता है । कुछ समय के लिए यह कंकण आकृति में  दिखाई देगा इसलिए इसे कंकणाकृति ग्रहण भी कहेंगे दूसरी ओर यह ग्रहण व्यतीपात महापात से व्याप्त होने के कारण जप-पाठ-स्नान-दान-मंत्र दीक्षा के लिए सिद्धि कारक अक्षय फलदायी एक दुर्लभ संयोग है आप इस महा योग में अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करें ।
निषेध:- सूतक काल एवं ग्रहण काल में बाल ,वृद्ध व रोगियों को छोड़कर भोजन का निषेध है । ग्रहण काल में  शयन,भोजन शौच का पूर्ण निषेध है ।
सावधानी:-जल,दूध , दही आदि में पवित्रता के दृष्टि कोण से  कुशा या तुलसी दल डाल दें ।
कैसे करें दिन का प्रारम्भ:-21 जून को आपका जागरण ग्रहण के सूतक काल में होगा प्रातःकाल दैनिक क्रिया ,स्नानानादि से  निवृत होकर धूप -दीप प्रज्वलित कर योग,मंत्र जाप,पाठादि साधना प्रारम्भ कीजिए ,ध्यान रहे मूर्तियों का स्पर्श न करें । देवार्चन ,पूजनादि ग्रहण समाप्ति होने पर स्नान के बाद ही होगा ।  
   द्वादश राशियों पर ग्रहण का प्रभाव:-
         यह ग्रहण मृगशिरा एवं आद्रा नक्षत्र अर्थात् मिथुन राशि में है ,मिथुन राशि के लिए यह विशेष प्रतिकूल है । वृष,मिथुन,कन्या,तुला,धनु व मीन राशि के लिए  ग्रहण का फल प्रतिकूल है अन्य के लिए सामान्यतया ठीक है । जिनके लिए ग्रहण का फल प्रतिकूल है वे तथा गर्भवती देवियाँ  ग्रहण न देखें । प्रतिकूल फल निवृत्ति के लिए जप ,पाठ,व लाल ,नीली,काली वस्तुओं का दान तथा ग्रहण काल में  भगवान का स्मरण करें ।
भूमण्डल पर ग्रहण का प्रभाव:-
         किसानों को भारी संकट का सामना करना पड़ेगा,ग्रहण के समय मिथुन राशि में सूर्य-चन्द्र-बुध-राहु का चतुग्रही योग एवं मकर के नीचस्थ वक्री गुरु का वक्री शनि के साथ सम्बन्ध प्रतिष्ठित शासकों,सैन्य अधिकारियों तथा देश व विश्व के लिए  बहुत भयावह है । अफगानिस्तान,चीन, जापान,पाकिस्तान व इण्डोनेशिया के कुछ भागों में जल प्रलय, तूफान ,भूकम्प रोगों आदि से जन -धन हानि की  सम्भावनायें हैं  । अनेक देशों में तनाव व युद्ध की स्थिति रह सकती है । 
अमावस्या श्राद्ध निर्णय:-यहाँ अमावस्या तिथि 21 जून की अपेक्षा 20 जून को मध्यान्ह काल को अधिक व्याप्त कर रही है इसलिए अमावस्या तिथि जन्य वार्षिक क्षयाह एकोदिष्ट श्राद्ध 20 जून  को किया जाना  शास्त्र  सम्मत है । 
विशेष  निवेदन:-इस दिन विश्व कल्याण एवं आत्म कल्याण के लिए अधिक से अधिक  भगवान नाम मंत्र का जाप करें । इस विवरण को समस्त  सनातनियों को अधिक से अधिक मात्रा में  शेयर करें । 

निवेदक:-आचार्य (डॉ .) रमेश चन्द्र जोशी
प्रधान सम्पादक श्रीताराप्रसाददिव्य पंचांग रामनगर नैनीताल (उत्तराखंड)