श्रीताराप्रसाद दिव्य पंचांग द्वारा विगत ६ वर्षों में अनेक अश्रुत एवं अलोकित विषयों को प्रस्तुत करके ज्योतिष जगत की जो सेवा की है उससे आप परिचित ही हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य है- तिथि पर्वों की एकरूपता, सूक्ष्म गणित की प्रस्तुति, ज्योतिष की आवश्यक विषय वस्तु को एक पटल पर उपलब्ध कराना तथा शुद्ध जन्म पत्रिकाओं का निर्माण ।
कुर्मांचल में बन रही अशुद्ध जन्म पत्रिकायें ज्योतिष जगत के लिए विशेष चिन्ता का कारण रही हैं । इस पर विशेष मन्थन करने के बाद हमने यहाँ के विभिन्न जनपदों के २००० जन्म पत्रिकाओं पर अनुसंधान किया जिसमें १६०० जन्म पत्रिकायें अशुद्ध पायी गई जिसका मुख्य कारण अशुद्ध इष्ट काल एवं अशुद्ध लग्न मान से लग्न साधन था इसका एक कारण यहाँ के परम्परागत पंचागकारों का संकुचित ज्ञान भी था।
यद्यपि यहाँ के सूर्योदय- सूर्यास्त आदि को हमने अपने पंचांग के माध्यम से शुद्ध कर दिया है, लेकिन यहाँ के अधिकांश ज्योतिर्विद व पुरोहित जन आज भी २० अयनांशीय सायन लग्न मानों का प्रयोग कर रहे हैं जिससे कुण्डली में लग्न त्रुटि पूर्ण होने से जो जातक मंगली नहीं हैं वे मंगली दर्शित किये जा रहे हैं जो मंगली हैं उन्हें मंगली नहीं दिखाया जा रहा है यह स्थिति ज्योतिष जगत के लिए चिन्तनीय है।
गिरिजा माता की अहैतुकी अनुकम्पा से ३०० वर्षों के बाद हमने प्रचलित लग्नमानों को संशोधित कर शुद्ध लग्नमान प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हम प्रतिज्ञा पूर्वक ज्योतिष जगत को विश्वास दिलाते हैं कि किसी पंचांगकार द्वारा यह अपूर्व प्रस्तुति है।
इसमें उत्तराखंड के समस्त जनपदों के अलावा दिल्ली, मुम्बई, लखनऊ, चण्डीगढ के भौगोलिक अक्षांश, भूकैन्द्रिक अक्षांश, त्रिकोणमिति से परिगणित पलभा दशमलव में, पलभा अंगुलादि, चरखण्ड पल-विपल।
उक्त सभी स्थानों के चरखण्ड, लग्नमान (स्वोदय पल) पृथक-पृथक।
सायन संस्कृत लग्न मानों से भुक्त-भोग्य विधि से लग्न साधन के अभ्यस्त ज्योतिषियों की सुविधा के दृष्टिगत सम्पूर्ण कुर्मांचल के लिए २४ अयनांशीय सायन संस्कृत लग्न सारणी सम्पूर्ण गणित सहित प्रस्तुत की जा रही है।
इसके बाद लग्न साधन की प्राचीन एवं शास्त्रीय विधि सरल उदाहरण सहित विस्तार से दी गई है।
तत्पश्चात सायन संस्कृत लग्न मानों से सूर्य के भुक्त-भोग्यांश से लग्न साधन की विधि एवं उसमें भी अयनांश संस्कार कैसे किया जाता है यह बताया गया है।
पुनः सारणी द्वारा लग्न साधन की विधि उदाहरण सहित विस्तार से दी गई है तथा सारणी द्वारा साधित लग्न में कैसे अयनांश संस्कार किया जाता है यह सरल भाषा में समझाया गया है।
इसके बाद साम्पातिक काल द्वारा लग्न साधन की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
इस प्रकार श्रीताराप्रसाददिव्य पंचांग का आगामी संवत् २०७८ शाके १९४३ का "लग्नोदय रहस्य विशेषांक" प्रत्येक ज्योतिष प्रेमियों के लिए एक ग्रन्थ के रूप में दीर्घ काल के लिए संग्रहणीय है।
आपसे विशेष निवेदन है कि आप इस ज्योतिष ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पंचांग के आगामी संस्करण की न्यूनतम १०(दस) प्रतियाँ अपने क्षेत्र में वितरित करने का संकल्प ले आपको पंचांग अत्यंत ही न्यूनतम लागत मूल्य पर दिया जायेगा इस सम्बन्ध में अपनी स्वीकृति से हमें निम्न नम्बर पर सम्पर्क करें।
कुछ सुदूर क्षेत्रों तक पंचांग बहुत ही बिलम्ब से पहुँचता है इस समस्या के निदान हेतु आप अपने क्षेत्र में न्यूनतम १०(दस) जनों का समूह बना कर हमें सूचित करें आपको भी पंचांग लागत मूल्य पर डाक से भेजा जायेगा।
इस विशेषांक के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य है कि सभी जातकों की जन्मपत्रिकायें सही व शुद्ध बनें । हम अपने उद्देश्य में सफल तभी होंगे जब आप हमें सहयोग करेंगे।
पंचांग सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है इसलिए इसे जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से अपने स्तर से अधिक से अधिक प्रतियाँ वितरित करने के लिए हमसे सम्पर्क करने की कृपा कीजिएगा । विशेष भगवत्कृपा। श्रीगिरिजा माता की जय। श्रीकृष्ण स्मृतिः।
निवेदक- आचार्य (डॉ)रमेश चन्द्र जोशी प्रधान सम्पादक श्रीताराप्रसाददिव्य पंचांग, ज्योतिष भवन, चित्रकूट, रामनगर, नैनीताल (उत्तराखंड)
सम्पर्क- 9410167777
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